Friday, July 30, 2010

मेरी गर्लफ्रेंड दीपिका

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प्यास से प्यार तक-2

प्यास से प्यार तक-2
प्रेषक : मानस गुरू

तभी से मैं श्रीजा को पाने के लिए योजना बनाने लगा। कुछ दिन बाद समीर कुछ काम से अपने घर चला गया। यही मेरे लिए सोने पे सुहागा जैसा था। तो मैंने श्रीजा को चोदने की सारी योजना पर अमल करने लगा।

उस दिन मैं सुबह के करीब नौ बजे ही कॉलेज पहुँच गया और श्रीजा के आने का इन्तजार करने लगा। लगातार उसकी स्कूटी की आवाज की तरफ कान खड़े हुए थे। जैसे ही उसकी स्कूटी की आवाज आई, मैं कॉलेज के लाइब्रेरी में उसका इन्तजार करने लगा क्योंकि वो कॉलेज आते ही हर रोज पहले लाइब्रेरी जाती थी।

जब वो लाइब्रेरी आई तो मैं जाकर उसकी मेज़ पर उसके आगे बैठ गया। वो हमेशा की तरह एक मोम की गुड़िया जैसी लग रही थी। उसके गहरे नीले टॉप से उसकी चूचियों के उभार बाहर झाँक रहे थे। उसकी खूबसूरती के आगे जैसे मेरे मुँह में ताला लग गया था।

फिर मैंने उससे पूछा," श्रीजा, क्या पढ़ रही हो ?"

" मैथ्स !"

" मुझे तो मैथ्स का कुछ भी नहीं आता, क्या तुम मुझे कुछ प्रोब्लम्स समझा दोगी, जिससे मैं पास हो जाऊं?"

" हाँ, समझा तो दूँगी, मगर कब और कहाँ ?"

" अरे तुम हॉस्टल में आकर मुझे समझा देना।"

" ठीक है, कल तो सन्डे है, मैं सुबह पहुँच जाउंगी, ओके !"

" थैन्क्स, तो मैं कल तुम्हारा इन्तजार करूँगा, ओके बाय !"

तब मैं हॉस्टल चला आया और श्रीजा को चोदने के ख्याल से ही बेचैन हो रहा था। मेरा लंड तभी से खड़ा हो गया था और रोंगटे खड़े होने लगे थे। मैंने रात जैसे- तैसे काटी।

सुबह-सुबह मैं बाजार गया और कंडोम ले कर आया। फिर नहा कर फ्रेश होकर श्रीजा का इन्तजार करने लगा। करीब नौ बजे मेरे कमरे के दरवाजे के दस्तक हुई। मैंने जाकर दरवाजा खोला तो श्रीजा को अपने आगे पाया जिसको चोदने के सपने मैं करीब एक महीने से देख रहा था और आज वो सपना पूरा होने जा रहा था। यही सोच के सारे बदन पर अजीब सी मस्ती छा रही थी।

आज श्रीजा दूसरे दिनों से कुछ ज्यादा ही खूबसूरत नजर आ रही थी। उस दिन उसने पीले रंग का सलवार-सूट पहन रखा था। उस पर काले रंग का दुपट्टा ! उसे देख कर मैं तो यह भी भूल गया कि उसे अन्दर भी बुलाना है। करीब दस सेकंड बाद मुझे पता चला और मैंने श्रीजा को अन्दर बुला लिया।

उसे कुर्सी पर बैठने को कहा। वो आराम से बैठ गई। फिर मैंने उसे चाय पानी पूछा। उसने मना कर दिया।

तब श्रीजा ने मेरी तरफ देखा और मैथ्स की किताब लाने को कहा। मैं मैथ्स की किताब ले आया तो वो मुझे कुछ प्रोब्लम्स समझाने लगी। करीब 15 मिनट बाद मैंने बोला," काफी बोरिंग है ये मैथ और मैंने जाकर लैपटॉप ऑन कर दिया और उसे लाकर टेबल पे श्रीजा के सामने रख दिया।

तब मैं श्रीजा से बोला,"आज मैं तुम्हें कुछ दिखने जा रहा हूँ !" और मैंने लैपटॉप पर वो फ़िल्म चला दी।

खुद को वीडियो में देख के श्रीजा भौंचक्की सी रह गई। फिर जब समीर ने उसके कपड़े उतारने शुरु किए तो उसका चेहरा लाल हो गया। उसने शर्म के मारे अपना हाथ अपने चेहरे पर रख दिया। कुछ देर बाद वो फूट फूट के रोने लगी। उसने मेरे पैर पकड़ लिए और रोते हुए बोली," देव, तुमने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा, मेरे मम्मी पापा यह जान गए तो खुदकुशी कर लेंगे। ये तुम और किसी को मत दिखाना प्लीज़ ! तुम्हें हमारी दोस्ती की कसम !"

"दोस्ती है, तभी तो अब तक किसी को नहीं दिखाया, लेकिन अगर तुमने वो नहीं किया जो मैं चाहता हूँ तो कल तक यह वीडियो सारी दुनिया देखेगी।"

" क्या करना होगा मुझे? मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूँ !"

" तुम्हें मेरे साथ वही करना होगा, जो तुमने समीर के साथ इस वीडियो में किया है।"

" क्या? तुम इतने गिरे हुए इंसान हो, मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था !"

" मुझे और नीचे गिरने में ज्यादा देर नहीं लगेगी !"

तब श्रीजा कुछ देर खामोश रही जैसे पत्थर की मूरत बन गई हो और फिर मेरे बिस्तर पर आकर बैठ गई, अपना दुपट्टा नीचे गिरा कर बोली," कर लो जो करना है !"

मैं तो पूरा मज़ा लूटने के मूड में था, इसलिए बोल दिया," तुम्हें मेरा पूरा साथ देना होगा, जैसे तुमने समीर का साथ........."

तब मैं आगे बढ़ा और अपना हाथ श्रीजा के लबों पर रख दिया, वो फूल से कोमल तो थे लेकिन शोलों सी गर्मी थी उनमें !

मुझे लग रहा था जैसे वो रस के भंडार हैं और मैं उसकी बूँद बूँद पीने के लिए बेताब हुआ जा रहा था। फिर मैंने अपने लब उसके लबों पे रख दिए और धीरे धीरे लबों को काटने और चूसने लगा। मेरी और उसकी जबान टकराने लगी।

जैसा कि मैंने पहले ही उसे बोल दिया था, उसे भी साथ देना पड़ा। वो मेरे बालों को सहलाती जा रही थी।

फिर मैंने अपना दायाँ हाथ उसके भरे हुए सीने के ऊपर रख दिया तो वो जैसे चौंक सी गई। दूसरे हाथ से मैं उसकी पीठ सहलाता जा रहा था। मैं उसकी मदमस्त जवानी को पूरी तरह से अपने रोम-रोम में महसूस करना चाहता था।

कुछ देर बाद मैंने धीरे से उसका कमीज़ उतार दिया। अन्दर श्रीजा की चूचियों को एक काले रंग की ब्रा जकड़े हुए थी। उसके बोबे ब्रा के बंधन से छूटने के लिए उतावले मालूम पड़ रहे थे। मैं उन पहाड़ियों की कोमल और रेशमी दुनिया में खो जाना चाहता था।

लेकिन मैंने जल्दबाजी ना करते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ने का फ़ैसला किया।

मैंने फिर उसकी ब्रा के उपरी हिस्से से झांकती चूचियों को चूम लिया और चाटने लगा। फिर मैंने ब्रा के ऊपर से ही चूचियों को खूब मसला। श्रीजा की सिसकारियाँ छूटनी शुरु हो गई थी। वो ना चाहते हुए भी मेरी इस हरकतों से धीरे धीरे गर्म होने लगी थी।

मैंने श्रीजा के पूरे बदन को अपने लबों से छुआ। श्रीजा इससे मचलने लगी। उसके नाभि पर चुम्बन लिया तो जैसा पूरे बदन में कंपकंपी सी दौड़ गई।

अब मैंने उसकी पहाड़ियों को आजाद करने का सोचा और उसकी ब्रा का हुक पीछे से खोल दिया। अब श्रीजा मेरे आगे आधी नंगी थी। उसकी जवानी मेरे आगे अंगडाई भर रही थी। उसके मोमे जैसे मुझे बुला बुला के बोल रहे हों," आओ, हमें अपने हाथों से पुचकारो, अपने होठों से दुलारो, और हमारा रस पी जाओ !"

मैं श्रीजा के दाईं चूची के चुचूक को चूसने लगा और बाईं को अपनी हाथ से पुचकारने लगा।

श्रीजा आँखें मूँद कर गहरी सांसें भर रही थी।

फिर मैंने अपना टी-शर्ट उतार दिया। मेरा बदन देख कर श्रीजा की आँखें जैसे फटी रह गई, क्योंकि मेरा बदन समीर से काफी ज्यादा कसा हुआ और मरदाना था।

फिर मैंने श्रीजा की पैंट उतार दी। अब उसके शरीर पर एक पैंटी ही बची थी।

उसकी टांगें जैसे किसी कारीगर की सालों की मेहनत के बाद बनी मूर्ति की भाँति लग रही थी, एक भी दाग या खराबी नहीं थी उनमें !

फिर मैं श्रीजा की टांगों को चूमता गया और श्रीजा सीसकारियाँ लेती रही।

मैंने अब अपनी पैंट भी उतार दी। मेरा लंड तो कब से खड़ा होकर अन्दर से पैंट फाड़ के बाहर आने को बेताब हो रहा था। पैंट खोलते ही लंड एक नुकीले चीज की तरह चड्डी को सामने धकेल रहा था, यह देख कर श्रीजा शरमा सी गई।

फिर मैं श्रीजा के पैंटी की तरफ बढ़ा और उसे उतारने लगा तो श्रीजा ने मेरे हाथ पकड़ लिए। लेकिन मैंने उसकी पैंटी को टांगों के रास्ते उतार दिया।

श्रीजा ने अपना चेहरा दोनों हाथों से ढक लिया।

मैंने जिसको ख्वाबों में इतनी बार चोदा था आज वो मेरे आगे पूर्ण नग्नावस्था में पड़ी थी और मुझे जन्नत की सैर कराने के लिए तैयार थी। उसकी दोनों टांगों के बीच तिकोने आकार में छोटे छोटे बालों का एक जंगल था और उसके नीचे थी दो गुलाबी पंखुड़ियाँ और उनके बीच जन्नत में दाखिल होने के लिए छोटा सा रास्ता ! उसे देखते ही मेरा मन जल्दी से जन्नत देखने को उतावला होने लगा। अब मैंने अपनी चड्डी उतार दी और मेरी सात इन्च का लंड तना हुआ खड़ा था। लंड को देखकर श्रीजा के चेहरे पर कुछ बेताबी और घबराहट के निशान नजर आने लगे क्योंकि समीर का लंड मेरे इतना न ही लंबा था और न ही मोटा।

मैं श्रीजा की जांघ की भीतरी चिकनी सतह को चाटता गया और श्रीजा के पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी।

अब मैं धीरे-धीरे श्रीजा के उस अंग के ओर बढ़ चला जो कि एक लड़की की सबसे अनमोल चीज़ होती है, मैं उसे आज लूट लेना चाहता था। उसकी चूत से मदहोश करने वाली गंध आ रही थी।

मैं धीरे धीरे आगे बढ़ा और चूत की एक पंखुड़ी को अपनी होंठों के बीच लेकर थोड़ा भींच लिया और श्रीजा जैसे तड़प सी उठी। मैंने दोनों पंखुड़ियों को कई बार ऐसा किया और हाथों से मसला भी। अब मैं श्रीजा की भग-कलि को मसलने लगा और श्रीजा और जोर जोर से मचलने लगी और सिसकारियाँ भरने लगी। उसकी चूत थोड़ा थोड़ा पानी छोड़ने लगी थी।

अब मैं समझ गया कि वो आखिरी पल आ गया है जिसका इन्तजार मैं इतने दिनों से कर रहा था। मैं आगे बढ़ा और मेरा पूरा शरीर श्रीजा के शरीर के ऊपर आ गया। उसके स्तन मेरी बालों भरी मरदाना छाती के नीचे दबे हुए थे। मैंने दोनों चूचियों को कुछ देर तक होंठों से चूसा।

अब श्रीजा की बेताबी चरम पर पहुँच चुकी थी। मैंने अब अपने लण्ड का सुपारा उसकी छोटी सी चूत के आगे रखा और धीरे धीरे अन्दर धकेलने देने लगा। श्रीजा थोड़ा चिल्लाई और मेरा सुपारा उसकी चूत के अन्दर था।

श्रीजा की चूत अन्दर से मक्खन की तरह चिकनी, नर्म और काफी गीली थी और काफी गर्म भी थी। मुझे जन्नत दिखाई देने लगी थी। अब बिना किसी कोशिश के ही धीरे-धीरे लंड चूत के अन्दर और अन्दर घुसता ही जा रहा था। कुछ देर बाद लंड और अन्दर नहीं गया तो मैंने थोड़ा जोर लगाया और श्रीजा दर्द से चीख उठी। मेरा लंड अब पूरा का पूरा श्रीजा के अन्दर था।

श्रीजा की चूत ने मेरे लंड को जकड़ रखा था। वो अनुभव शब्दों में बयान नहीं जा सकता। खुद का लंड किसी चूत में जाने से ही पता लग सकता है असली चूत का मज़ा।

अब मैं धीरे-धीरे लण्ड को को अन्दर-बाहर करने लगा। श्रीजा की चूत काफी गीली हो चुकी थी इसलिए लंड आसानी से अन्दर-बाहर हो रहा था। मैंने करीब दस मिनट तक श्रीजा को उसी तरह चोदा।

फिर मैंने उसे चौपाये की अवस्था में आने को कहा और पीछे से उसके चूत में अपना लौड़ा डाला। इस अवस्था में और ज्यादा मज़ा आने लगा। बीच-बीच में मैं आगे झुक के उसके स्तनों को जकड़ लेता और श्रीजा सिसकार उठती। मैं उसके पीठ पर चुम्बन किए जा रहा था।

करीब 15 मिनट तक चोदने के बाद हम दोनों फिर से पहले वाली अवस्था में आ गये। अब मैं कंडोम ले आया शेल्फ से और पहन लिया। मैं नहीं चाहता था कि मेरी वजह से श्रीजा को कोई मुसीबत झेलनी पड़े।

कंडोम पहनने के बाद मैंने फिर से मेरा लंड श्रीजा के चूत में डाला और पहले धीरे-धीरे, फिर जोर-जोर से चोदने लगा। श्रीजा भी अब अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने लगी। करीब दस मिनट बाद मेरे लंड पर श्रीजा की चूत का दवाब अचानक बढ़ गया और श्रीजा निढाल हो गई।

मैंने अब भी जोर जोर से चोदना चालू रखा और कुछ देर बाद अपना सारा माल कंडोम के अन्दर गिरा दिया।

कुछ देर तक हम दोनों वैसे ही पड़े रहे बिस्तर पर !

हम दोनों पसीने से तर-बतर हो चुके थे। फिर मैंने धीरे से अपना लंड श्रीजा की चूत से निकाला, खड़ा हो गया, श्रीजा के होठों पर एक चुम्बन करके चला आया। मैंने कंडोम उतारा और बाथरूम चला गया।

कुछ देर बाद बाहर आया और श्रीजा को अन्दर जाने के लिए बोल दिया। श्रीजा अन्दर गई और नहा कर बाहर आई। अब मैंने अपने कपड़े पहन लिए थे। श्रीजाने भी अपने कपड़े पहन लिए। फिर श्रीजा मुझसे बिना कुछ कहे बाहर निकल गई।

उसके कुछ दिन बाद तक वो कॉलेज नहीं आई। मैं घबरा गया था, कहीं वो कुछ कर तो नहीं बैठी। फिर सात दिन बाद समीर लौट आया और श्रीजा भी कॉलेज आने लगी, लेकिन वो जब भी मुझे देखती उसका खिला सा चेहरा मुरझा जाता और उसमें नफरत साफ झलकती थी।

पहले कुछ दिन तो श्रीजा और समीर के बीच सब कुछ सामान्य था लेकिन समीर का मन अब श्रीजा से ऊब चुका था और वो एक नई लड़की के पीछे लग गया था।

श्रीजा को समीर का सब सचाई तब पता चली जब एक दिन उसने समीर को उस लड़की को चूमते हुए पकड़ लिया। अब वो काफी उदास रहने लगी और कॉलेज भी आना काफी कम कर दिया उसने।

एक दिन मैं शाम को नदी किनारे टहल रहा था कि अचानक कुछ पानी में गिरने की आवाज़ आई। मैंने देखा तो एक लड़की पानी में डूब रही थी। मैं क्यूंकि एक अच्छा तैराक हूँ, मैं भी पानी में कूदा और उस लड़की को किनारे तक लाया। मैं पानी में अंधेरे की वजह से उसका चेहरा नहीं देख पाया था। जब किनारे उसको लिटाया तो यह देख कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गई कि वो कोई और नहीं बल्कि श्रीजा ही थी। पेट में पानी भर जाने से वो बेहोश थी।

मैंने उसे कुछ लोगों की मदद से पास के हस्पताल पहुँचाया। कुछ देर बाद श्रीजा को होश आया। मैं जब उसके सामने गया तो वो पहले चौंकी और अपना चेहरा फेर लिया। डॉक्टर साब ने तब बताया कि मैंने ही उसकी जान बचाई है और डॉक्टर साब बाहर चले गए।

तब श्रीजा ने मुझसे पूछा,"क्यूँ बचाया मुझे ? जिसको सब कुछ दे दिया वो तो हाथ छोड़ के चला गया, तो फिर जिंदगी का हाथ थामने से क्या फायदा !"

मैंने तब कहा,"समीर तो तुम्हारे प्यार के लायक था ही नहीं, लड़कियों के जिस्म से खेलना तो उसका शौक है और उस पर अपनी जिंदगी कुर्बान कर देना कोई समझदारी की बात नहीं ! तुम्हारे घर में और भी कई जिम्मेदारियाँ हैं जो तुम्हें निभानी हैं।"

मेरी बातें सुन कर वो कुछ हद तक सही हुई। करीब दो घंटे बाद डॉक्टर साब ने एक बार फिर चेकअप किया और डिस्चार्ज कर दिया। श्रीजा को मैंने ऑटो मैं बिठाया और उसके घर छोड़ दिया।

उसके दूसरे दिन से श्रीजा रोज कॉलेज आने लगी और मेरी और श्रीजा की अच्छी दोस्ती हो गई। अगले कुछ महीनो में दोस्ती प्यार में कैसे तबदील हो गई, ये हम दोनों में से किसी को पता भी नहीं चला।

आज मैं और श्रीजा एक ही कॉलेज में एम बी ए की पढ़ाई कर रहे हैं। श्रीजा एक गायिका बन चुकी है और उसकी कई सारी म्यूजिक ऐल्बम आ चुके हैं।

हम दोनों एक दूसरे को आज भी उतना ही प्यार करते हैं जितना की शुरुआत में करते थे, बल्कि धीरे-धीरे प्यार और गहरा हुआ है और श्रीजा और मैंने शादी करने का भी फ़ैसला किया है लेकिन अभी नहीं, कहीं अच्छी सी नौकरी लगने के बाद !!!

आशा है कि अन्तर्वासना डॉट कॉम पर प्रकाशित यह कहानी आपको अच्छी लगी होगी।

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आंटी का मीठा मीठा दर्द

आंटी का मीठा मीठा दर्द
प्रेषक : राज मेहता

हाय दोस्तो, मुझे हिंदी लिखनी नहीं आती पर कोशिश कर रहा हूँ, मेरी गलतियों को नज़रान्दाज़ कर दें।

मेरा नाम राज है, मैं इन्दौर का रहने वाला हूँ। मैं जब भी अपने घर जाता था तो हमेशा पड़ोस की आँटी को चोदने के बारे में सोचता रहता था।

इस बार जब मैं अपने घर गया तो मेरे ऊपर कृपा हो ही गई, मुझे चोदने का मौका मिल ही गया। मैं जिम जाने लगा था जिसका असर मुझे घर पर मालूम चला। आँटी के पति दुबले पतले थे और दिन भर को़र्ट में रहते थे।

उस दिन आँटी का हीटर ख़राब हो गया था। हमारे शहर में कई लोग हीटर पर खाना बनाते हैं। आँटी का भी खाना नहीं बना था, मैं गाय को रोटी देने बाहर आया तो आँटी बोली- राज, मेरा हीटर खराब हो गया है, उसे सुधार दो !

मैंने मजाक में कहा- आप तो खुद ही इतनी गर्म हो कि तपेली को हाथ से पकड़ लो तो पानी भाप बन जाये !

वो हंस दी, मैंने आज तो रास्ता साफ समझा और उनका हीटर सही करने उनके घर आ गया। उनकी लड़की जो दसवीं में है, स्कूल जा रही थी।

मैं हीटर को सही करने लगा, उनसे टेस्टर माँगा तो वो उसे लेकर खुद ही हीटर की स्प्रिंग को चैक करने लगी। तब उनके बड़े बड़े स्तन उनके ब्लाउज़ से बाहर दीखने लगे थे। मन तो कर रहा था कि उनके स्तनों को पकड़ कर मसल डालूँ पर मर्यादा मुझे रोक रही थी।

तब मैंने उनसे टेस्टर लेना चाहा तो उनका हाथ मेरे हाथ से छू गया। मुझे लगा कि आँटी इतनी हॉट हैं, अंकल की तो रोज जन्नत की सैर है।

मैंने जब स्प्रिंग से टेस्टर छुआ तो मेरे आँटी के ख्यालों के चक्कर में मुझे करंट का एक झटका लगा, मैं लगभग बेहोश हो गया था। आँटी घबरा गई और उन्होंने पानी लाकर मेरे ऊपर डाला और मुझे अपनी गोद में ले लिया और मुझे उठाने लगी।

मेरा सीना एकदम उभरा था जो शर्ट का बटन खुला होने से आँटी को दिख रहा था। आँटी ने अपना एक हाथ मेरी शर्ट में डाल दिया और धीरे-धीरे मेरे सीने पर फ़िराने लगी।

मुझे होश आने लगा था, आँटी बड़े प्यार से अपना गर्म हाथ मेरे 40 इंच के सीने पर घुमा रही थी।

मेरा लंड घोड़े के लंड की तरह धीरे धीरे बढ़ने लगा था जो मेरे रीबोक की चड्डी से बाहर निकलने को तरस रहा था और आँटी मेरे सीने को रगड़े जा रही थी।

अब मुझसे सब्र नहीं हो रहा था, मैंने अपनी आंख खोल दी। वो एकदम से मुझसे अलग हो गई।

मैंने बोला- आँटी करो ना ! मुझे मजा आ रहा है।

उसने पूछा- पहले कभी सेक्स नहीं किया ?

मैंने मना कर दिया- नहीं !

मेरा दिमाग गर्म हो रहा था कि अगर आज सेक्स नहीं कर पाया तो मैं मर जाऊँगा।

वो शायद मेरी अवस्था समझ चुकी थी, वो मेरे पास आई और हाथ को चूमने लगी। मुझे कुछ होने लगा था। उसने धीरे से मेरे माथे को चूम लिया। मेरा लंड जोर जोर से सांस ले रहा था। आँटी की भी सांसें गर्म होने लगी थी। फिर वो मेरी दोनों आँखों को चूमने लगी। मेरी तो हवा ख़राब होने लगी थी। वो इतनी गोरी थी कि अगर हाथ रख दो तो लाल हो जाये।

उसने मेरे दोनों हाथ अपने वक्ष पर रख दिए और बोली- इनको दबाओ !

वो मुझे अनाड़ी समझ रही थी। मैंने अपने हाथ उसके नर्म-नर्म बोबों पर घुमाने शुरु कर दिए। वो मचलने लगी और मेरे मसल्स को सहलाने लगी।

मैंने धीरे से उसकी साड़ी के अंदर अपना हाथ डाल दिया और उसकी चूत के दाने को छू लिया।

वो सिसकने लगी और बोली- तेरे अंकल को तो कोर्ट से ही समय नहीं है, मैं सात महीने से अपनी प्यास मोमबत्ती या अपने हाथ से मिटा रही हूँ। मेरी प्यास बुझा दे, तेरा मुझ पर उपकार होगा।

मैं उसकी चूत को रगड़े जा रहा था, उसने भी मेरे लंड को पकड़ लिया और रगड़ने लगी। मैंने उसके पेट पर हाथ रखा तो वो स्प्रिंग की लहरों की तरह हिलने लगा। अब हमारी धड़कने बढ़ चुकी थी। मैंने अपना लंड उसके कहने पर उसके दोनों बोबों के बीच रख दिया। मैं तो जैसे जन्नत में पहुँच गया था।

उसके बाद वो मुझसे बोली- लंड को धीरे-धीरे आगे पीछे करो !

मेरी उत्तेजना की सीमा पार हो रही थी, साथ ही मजा भी बढ़ता जा रहा था। मेरी सांसें तेज होने लगी थी। मेरा लंड ठीक उसके मुँह के पास आ जा रहा था। वो अपनी जीभ से उसे चाटने की कोशिश कर रही थी, मुझे बड़ा मजा आ रहा था। मेरा लंड जैसे दो रुई के गोलों के बीच में हो जिनको हल्का गर्म कर दिया हो।

तभी वो जोर जोर से चिल्लाने लगी- और जोर लगाओ अह अहअहहहह अहह हहहहहहह ...........

उसने मेरे कूल्हे कस कर पकड़ लिए और एकदम ढीली हो गई .....

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प्रगति का समर्पण-2

प्रगति का समर्पण-2
लेखक : शगन कुमार

शालीन को रात को ठीक से नींद नहीं आई...। रह रह कर उसे प्रगति का चेहरा और बदन दिखाई देता ! उसे अपने संयम टूटने पर भी ग्लानि हो रही थी। वह एक भद्र पुरुष था और अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था। उसकी पत्नी भी उससे प्यार करती थी। उसका किसी और लड़की की ओर आकर्षित होना समझ नहीं आ रहा था।

शायद उसे मरदाना प्रवृति का ज्ञान नहीं था। पुरुष की प्रवृति उसे एक साथ कई यौन सम्बन्ध बनाने को आतुर करती है। उसका प्रजनन में जिम्मा सिर्फ अपना बीज डालने तक सीमित होता है। प्रकृति ने इसके बाद प्रजनन की सारी जिम्मेदारी नारी पर छोड़ दी है। इसीलिए नारी यौन सम्बन्धों को लेकर पुरुषों के मुकाबले अधिक गंभीर होती है। उसे अपने साथी चुनने में देर तो लगती है पर उसका चुनाव निर्णायक और दीर्घकालीन होता है। वह अक्सर अपने साथी के साथ अडिग सम्बन्ध कायम रखती है। इसका कारण प्रकृति के उस सिद्धांत पर निर्भर है जिसने नारी को मातृत्व के समस्त बोझ से लादा हुआ है। पुरुष का क्या है.....। किसी भी मादा के साथ सम्बन्ध बनाने को सदैव तत्पर रहता है ! यौन संबंधों में स्त्री-पुरुष के बीच यही एक बड़ा रूचि-विरोध है। मर्द को लगता है वह एक समय कितनी भी लड़कियों से प्यार कर सकता है और औरत को सिर्फ एक आदमी का प्यार पर्याप्त होता है।

खैर, शालीन की रात उधेड़बुन में ही निकल गई। सुबह दफ्तर जाते वक़्त मयूरी से आँखें नहीं मिला पा रहा था। वह फिर से किशोरावस्था में जा पहुंचा था जहाँ उसे उलझन, व्याकुलता और लज्जा का आभास हो रहा था। वह भौतिकता और आध्यात्मिकता के अंतर्द्वंद्व में फँस गया था। जब भी पुरुष पर ऐसी उलझन आई है देखा गया है कि अक्सर भौतिकता की ही विजय हुई है। काम, क्रोध, मोह और ईर्ष्या पर तो केवल साधू ही काबू पा सकते हैं। शालीन को यह निश्चित हो गया कि वह एक सामान्य पुरुष है, कोई साधू या देवता नहीं। उसका मस्तिष्क प्रगति की कामुक काया की छवि नहीं मिटा पाया और उसके जिस्म को हासिल करने की तीव्र लालसा को पूरा करने की ओर प्रेरित हो गया। कहते हैं यौनाकर्षण दुनिया की सबसे ताक़तवर शक्ति होती है। इसे हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है।

दफ्तर में भी शालीन का मन अपने काम में नहीं लग रहा था। दोस्तों की बातचीत, चुटकुले या दफ्तरी उथल-पुथल से परे वह अपने आप में गुम था। उसका दिमाग ऐसी तरकीब जुटाने में लगा था जिससे वह प्रगति के साथ यौन संसर्ग कर सके और किसी को पता ना चले। जब मन में किसी लक्ष्य को पाने की तीव्र इच्छा होती है, तो दिमाग उसका हल निकाल ही लेता है; खासतौर से अगर वह इच्छा जिस्म के निचले हिस्सों से सम्बंधित हो। ऐसा ही हुआ और शालीन को एक उपाय सूझ गया।

घर लौटते समय वह बिजली के सामान की दूकान से कुछ सामान ले आया और एक कारीगर को भी साथ ले लिया। घर पहुँच कर सामान्य तरीके से मयूरी को बताया कि बिजली की बचत और उससे सुरक्षा के लिए वह नया फ्यूज़ बॉक्स लगवा रहा है जिससे बिजली की बचत भी होगी और आग लगने का खतरा भी नहीं रहेगा। मयूरी को कोई आपत्ति नहीं हुई और कारीगर ने अपना काम शुरू किया। शालीन ने उसे निर्देश दिया कि वह किस तरह से कमरों में बिजली और पॉवर के कनेक्शन चाहता है। हर कमरे के लिए बिजली का अलग और पॉवर का अलग स्विच नए फ्यूज़ बॉक्स में लगवा दिया। जिस से घर में जहाँ चाहें बिजली या पॉवर या दोनों को चालू या बंद कर सकते हैं।

यह होने के बाद, उसने सर्दी का आश्रय लेते हुए पूरे घर में कालीन या दरी बिछवाने का आदेश दे दिया। वह चाहता था कि रात को उसके चलने-फिरने की आहट ना हो। जिस कमरे में प्रगति सोती थी उसकी अलमारी में उसने टॉर्च, कुछ तौलिये, चादरें, के वाय जेली की ट्यूब, अपने कुर्ते-पजामे और प्रगति के लिए लूंगी और कुर्ती छुपा कर रख दीं। उसने यकीन किया कि मयूरी के बेडरूम में कोई टॉर्च, मोमबत्ती या माचिस नहीं है। जो थीं उसने छुपा दीं जिससे आसानी से मिल ना सकें। उसने सोच लिया था कि रात को, सबके सोने के बाद, वह प्रगति के कमरे को छोड़ बाकी सारे कमरों की लाइट फ़्यूज़ बॉक्स से बंद कर देगा। जिससे जब वह प्रगति के कमरे में हो और अगर रात को मयूरी या उसके बेटे की आँख खुले तो वे घर में उजाला ना कर पायें। वह चाहता था कि वे उसको मदद के लिए पुकारें और वह अँधेरे अँधेरे में वापस अपने बेडरूम पहुँच सके। इससे वह प्रगति के साथ रंगे हाथों नहीं पकड़ा जायेगा।

सब तैयारी होने के बाद शालीन बेसब्री से रात का इंतज़ार करने लगा। इस दौरान एक दो बार उसको प्रगति घर में दिखाई दी पर उसने उसके साथ आँखें चार नहीं कीं। उसकी अन्तरात्मा उसको कुरेद रही थी पर उसके तन-मन में लड्डू फूट रहे थे। खाना खाकर और थोड़ी देर टीवी देखकर सब सोने लगे। कुछ ही देर में घर में सन्नाटा सा छा गया और सबके सोने की आवाजें आने लगीं।

शालीन को इसी का इंतज़ार था। जब उसे यकीन हो गया मयूरी और आकाश सो गए हैं, वह चुपचाप उठा और अपनी सुनियोजित योजना को अंजाम देने लगा। उसे पता था एक बार आँख लग जाने के बाद मयूरी गहरी नींद सोती है और ज्यादातर सुबह ही जागती है। आकाश कभी कभी रात को सुसु के लिए उठता है पर वह भी 3-4 घंटे के बाद। शालीन निश्चिंत हो कर फ्यूज़ बॉक्स की ओर गया और प्रगति के कमरे के आलावा बाकी सभी कमरों की बिजली के स्विच बंद कर दिए। इससे घर में घुप अँधेरा हो गया पर कमरों के हीटर और फ्रीज वगैरह चलते रहे। अब सोने वालों की आँख अगर खुल भी गई तो वे कुछ देख नहीं पाएंगे और जल्दी से हिल-डुल नहीं पाएंगे।

अब उसने मयूरी और आकाश के बेडरूम का दरवाज़ा भेड़ दिया और प्रगति के कमरे में आ गया। कमरा बंद करके उसने बाथरूम की बत्ती जला ली और उसका दरवाज़ा भी लगभग बंद कर दिया जिससे दरवाज़े की दरार से कमरे को रोशनी मिलती रहे। इतनी रोशनी उसके लिए काफी थी। उसे प्रगति का सोता (या सोने का नाटक करता) शरीर साफ़ दिख रहा था।

वह प्रगति के पास आ कर बैठ गया और इस बार बिना हिचक के उसके ऊपर से कम्बल हटा दिया। उसे यह जान कर ख़ुशी हुई की प्रगति ने घुटने तक पहुँचने वाली फ्रॉक पहन रखी थी और बनियान की जगह ब्रा थी। इस पोशाक में उसका काम आसान हो जायेगा। उसे प्रगति की समझदारी पर गर्व हुआ और वह समझ गया कि प्रगति भी शालीन के कल के दुस्साहस को ख़ुशी से स्वीकार कर चुकी है।

हीटर की गर्मी कमरे को गर्म किये हुई थी और प्रगति के समीपन ने शालीन को गर्म कर दिया था। शालीन ने अपने हाथ हीटर से गर्म करके प्रगति की टांगों पर फेरने शुरू किये। उसके तलवों का रगड़ कर गरम किया और पांव की उँगलियों को मसला। फिर ऊपर आते हुए घुटने से नीचे की टांगों को सहलाने लगा और बाद में घुटनों की मालिश की। प्रगति आराम से आँखें बंद किये लेटी हुई शालीन की हरकतों का मज़ा ले रही थी।

वैसे शालीन को यह तो पता चल गया था कि प्रगति उसके नटखट इरादों से वाक़िफ़ है पर यह नहीं जानता था कि वह उसके साथ किस हद तक जा सकता है। आखिर (उसकी नज़र में) वह एक नादान और अल्हड़ बालिका थी। उसे यह नहीं पता था कि प्रगति का कौमार्य लुट चुका है और वह यौन सुख से अपरिचित नहीं है। (कृपया अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर "प्रगति का अतीत 1, 2, 3, 4 & 5" पढ़ें) वह तो उसके साथ ऐसे पेश आ रहा था मानो वह एक अबोध कन्या हो। वह उसके साथ जल्दबाजी करके उसको डराना नहीं चाहता था। वह उसकी कामुकता और यौन के प्रति उत्सुकता बढ़ाना चाहता था।

कुछ देर टांगें सहलाने के बाद उसने एक हाथ उसके सिर पर फेरना शुरू किया और दूसरे हाथ से घुटनों के ऊपर जाँघों के तरफ बढ़ने लगा। वह उसे गुदगुदा रहा था और पोले पोले हाथों से उसकी जाँघों के रोंगटे खड़े कर रहा था। प्रगति अब ज्यादा देर तक सोने का नाटक नहीं कर पाई क्योंकि उसकी गुदगुदी उसे हिलने-डुलने को मजबूर कर रही थी और उसके अंतर्मन से ऊह-आह निकलने को हो रही थी।

आखिर उसने आँखें खोल ही लीं और शालीन की तरफ झुकी झुकी नज़रों से देखते हुए अपनी आँखों पर अपनी कलाई का पर्दा डाल दिया। यह शालीन को इशारा था कि उसे कोई आपत्ति नहीं है और शालीन समझ गया।

शालीन ने ज्यादा समय बर्बाद ना करते हुए उसकी फ्रॉक को ऊपर की तरफ उठा दिया। प्रगति ने भी अपने कूल्हे ऊपर करके उसकी मदद की और फ्रॉक उसके स्तनों के ऊपर होकर गले तक आ गई। अब वह ब्रा और चड्डी में थी और उसने अपनी टांगें शर्म के कारण भींच लीं। शालीन ने उसकी टांगों को घुटनों से पकड़ कर अलग किया और आश्वासन के तौर पर उसके कन्धों को थपथपा दिया।

अब शालीन ने पोले पोले हाथों और उँगलियों से उसकी ब्रा के ऊपर से उसके मम्मों और पेट तथा जांघ के अंदरूनी हिस्सों को उकसाना शुरू किया। साथ ही उसने चड्डी के ऊपर से ही उसकी योनि के ऊपर भी हाथ फिराना शुरू कर दिया। दोनों को मज़ा आ रहा था और शायद दोनों ही प्रगति की ब्रा और चड्डी से जल्दी छुटकारा चाहते थे। दोनों उत्तेजित हो गए थे और उतावले और बेचैन भी। ऐसे में जब शालीन ने प्रगति को आधी करवट लिटा कर उसकी ब्रा के हुक ढीले किये तो मानो दोनों को राहत मिली। शालीन ने ब्रा एक तरफ रख दी और एक शर्मीली प्रगति को सीधा किया जो अपने हाथ आँखों पर से हटा कर अपने स्तनों पर ले आई थी। शालीन ने दृढ़ता के साथ उसके दोनों हाथ बगल में इस तरह कर दिए मानो उन्हें वहाँ से ना हिलाने का आदेश दे रहा हो। प्रगति इन मामलों में अब काफ़ी समझदार थी और उसने अपने हाथ परे कर लिए।

शालीन को प्रगति के यौवन भरे, मांसल, छरहरे और गदराये हुए स्तन बहुत मादक लगे। उनके अहंकारी चुचूक शालीन को निमंत्रित भी कर रहे थे और चुनौती भी दे रहे थे। शालीन ने कितने सालों से ऐसे मदभरे और कमसिन स्तन नहीं देखे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था पहले वह उन्हें छुए या मुँह में ले। उसने दुविधा दूर करते हुए, एक को मुँह में और एक को हाथ में ले लिया और सीधा स्वर्ग का अनुभव करने लगा।

वैसे अभी पूरी तरह विकसित नहीं हुए होंगे पर इतने सुडौल, लचीले और उभरे हुए थे कि शालीन उन्हें छू और चूस कर फूला नहीं समा रहा था। एक भूखे बच्चे की तरह उसके चूचे चूसने लगा और दूसरे को अपनी हथेली से गोल गोल घुमाने लगा। एक स्तन पर कड़ा प्रहार और दूसरे पर कोमल स्पर्श का विरोधाभास प्रगति को विस्मय में डाल रहा था। शालीन ने आपे से बाहर हो कर जब उसकी चूची को काटने की कोशिश की तो प्रगति ने अनायास अपना स्तन उसके मुँह से निकाल लिया। साथ ही उसके मुँह से एक दर्द की ऊई.. निकल गई।

शालीन को जब अपनी करतूत का आभास हुआ तो उसने तत्काल प्रगति को हार्दिक संवेदना ज़ाहिर की और अपने कान पकड़ने का इशारा किया। प्रगति को मालूम था कि शालीन जान बूझ कर उसे दर्द नहीं पहुँचा रहा था पर यौन-वेग में ऐसा हो जाता है। तो उसने शालीन को कान पकड़ने से मना करते हुए सहज भाव से उसका सिर खींच कर अपने दूसरे स्तन के पास ले आई। शालीन ने प्रगति को आँखों ही आँखों में आभार प्रकट किया और आँखों के सामने परोसे हुए आकर्षक व्यंजन को भोगने लगा। जिस चूची को उसने यौनावेश में काट सा लिया था उसे प्यार से सहला कर मानो मना रहा था। प्रगति को शालीन का बर्ताव अच्छा लगा।

कुछ देर स्तनपान करने के बाद शालीन का चंचल मुँह अलग स्वाद की कामना करने लगा। उसने स्तन से मुँह उठा कर सीधा प्रगति के लरजते और रसीले होटों पर रख दिया। उसने यह नहीं सोचा था कि वह प्रगति का चुम्बन लेगा पर उसके मनमोहक आचरण को देखकर उससे रहा नहीं गया और उसने सच्चे प्यार की मोहर प्रगति के होटों पर लगा ही दी। प्रगति थोड़ी अचंभित तो हुई पर उससे ज्यादा उसे गौरव का अहसास हुआ। शालीन जैसे उच्च अधिकारी का चुम्बन उसके लिए बहुत मायने रखता था। शरीर को हाथ लगाना या सम्भोग करना लड़की को इतना मान नहीं देता जितना होटों पर दिया हुआ प्यारा चुम्बन। यह वासना और प्रेम में फ़र्क़ दर्शाता है।

अब शालीन ने प्रगति के कपड़े उतारने का अभियान जारी किया। प्रगति ने निर्विरोध उसका सहयोग किया और शीघ्र ही वह पूरी तरह निर्वस्त्र हो गई। शालीन के चुम्बन से मिले गौरव और उसके हाथों की हरकत से प्रगति का शरीर काफी रोमांचित हो चुका था और प्रमाण स्वरुप उसकी योनि काफी भीग गई थी। उधर प्रगति की नंगी काया को देख कर शालीन का लिंग अपनी शालीनता त्याग कर तामसिक रूप धारण करने लगा था। उसने अहतियात के तौर पर कमरे का दरवाज़ा अन्दर से बंद कर दिया और अपने कपड़े उतार कर प्रगति के पास आ गया।

प्रगति ने पहली बार शालीन का नग्न शरीर देखा और शरमा कर अपना मुँह फेर लिया। पर उसने छोटी सी झलक में ही शालीन के लिंग के आकार और उसके बाकी शरीर को देख लिया था। उसे यह देख कर अच्छा लगा कि शालीन अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखता होगा क्योंकि इतनी उम्र होने पर भी वह हृष्ट-पुष्ट था। उसके अंग तंदुरुस्त लग रहे थे, उसके सीने पर मुलायम बाल थे, पेट सपाट था और लिंग के आस-पास के बाल कतरे हुए थे। हालाँकि, वह कोई पहलवान या फिल्मी हीरो नहीं लग रहा था पर एक निरोग और स्वस्थ युवक समान ज़रूर नज़र आ रहा था। प्रगति उसको देख कर खुश हो गई। उसे ऐसा लगा शायद शालीन मास्टरजी के मुकाबले बहतर प्रेमी साबित होगा। (मास्टरजी के बारे में जानने के लिए "प्रगति का अतीत" कहानी पढ़िए) उसे ऐसा लगा मानो शालीन उसके साथ ज्यादा ज़ोरदार सम्भोग कर पायेगा।

शालीन ने प्रगति की योनि को छू कर देखा कि वह उसके साथ समागम के लिए पूरी तरह तैयार है। आम तौर पर वह सम्भोग के पहले ज्यादा से ज्यादा देर तक लड़की को उत्तेजित करने की क्रिया करता था पर आज उसके पास समय कम था। शालीन को पता था कि हर लड़की को यौन में उतना ही मज़ा आता है जितना कि मर्दों को। पर सदियों के सामाजिक बंधनों और संस्कारों की बंदिशों ने नारी-जाति को यौन आनंद का इज़हार करने पर पाबंदी सी लगा रखी है। उनको यह जताया जाता है कि यौन सुख का दिखावा सिर्फ बुरे आचरण की लड़कियाँ ही करती हैं। अच्छे संस्कारों वाली लड़कियाँ यौन ज्ञान से अपरिचित होती हैं और यौन सुख का आनंद वे बेधड़क नहीं ले सकतीं। यह हमारे समाज की मान्यताओं की विडम्बना है।

पर शालीन चाहता था कि वह जब किसी लड़की के साथ यौन करे तो उसको पूरा सुख दे और उसको मज़ा लेने का पूरा अधिकार हो। वह अपनी यौन-संगिनी की ख़ुशी की किलकारी सुनना चाहता था। उसने कहीं यह भी पढ़ा था कि लगभग हर लड़की यौन चरमोत्कर्ष (परम यौन आनन्द) को पाने की क्षमता रखती है बशर्ते उसे ठीक से उत्तेजित और उसके साथ धैर्य से सम्भोग किया जाये। आज वह इसी बात को आजमाना चाहता था। वह लिंग योनि सम्भोग के माध्यम से प्रगति को चरमोत्कर्ष प्राप्त करवाना चाहता था।

इसी आशय से उसने उत्सुकता से तपती प्रगति के नग्न बदन को अपने आलिंगन में जकड़ लिया और उसके होटों को चूमते हुए अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी। प्रगति ने भी शालीन को कस कर पकड़ लिया और उसके मुँह का अपनी जीभ से मुआयना करने लगी। समय की कमी होने के कारण शालीन ने जल्दी जल्दी उसके पूरे जिस्म पर हाथ फेरा और उसको पीठ के बल लिटाने लगा। पर प्रगति ने नीचे झुक कर उसके लिंग को अपने मुँह में ले लिया। शालीन इसके लिए तैयार नहीं था वह पहले से ही उत्तेजित था और ऊपर से प्रगति के आकस्मिक हमले से उसके नियंत्रण को झटका लगा। उसके लाख ना चाहने के बावज़ूद वह एक-दो मिनट में ही अपना संतुलन खो बैठा और प्रगति के मुँह से लिंग निकालने का प्रयत्न करने लगा, वह उसके मुँह में वीर्योत्पात नहीं करना चाहता था।

पर प्रगति का इरादा कुछ और ही था उसने उसके लिंगमुख को अपने होटों में इस तरह दबा लिया कि वह बाहर नहीं आ पाया। इससे शालीन की व्याकुलता और बढ़ गई और वह और भी जल्दी और वेग के साथ वीर गति को प्राप्त होने लगा। उसका करीब दो हफ्ते का संजोया हुआ रस प्रगति के मुँह में बरसने लगा। वीर्य की हर फुहार के साथ शालीन का शरीर झकझोर रहा था। कोई पांच-छः पिचकारियों के बाद शालीन और उसका लिंग शांत हुआ। शालीन के जीवन में पहली बार किसी ने उसका लिंग-पान किया था। वह उत्कर्ष के शिखर पर था और उसने कृतज्ञता से प्रगति को उठा कर उसके वीर्य से सने होटों को चूमते हुए अपने गले लगा लिया। वे कुछ देर तक ऐसे ही रहे और फिर पकड़ ढीली करके बिस्तर पर लेट गए।

शालीन को बरसों से यह कामना थी कि कोई उसके लिंग को चूसे पर पत्नी के अरुचि के कारण ऐसा नहीं हो पाया था। आज जब वह बिल्कुल इसके लिए तैयार नहीं था, प्रगति ने न केवल उसका लिंग मुँह में ले लिया, बल्कि उसका रस-पान भी कर लिया। तो शालीन को तो मानो स्वर्ग मिल गया था। अब तो प्रगति को तृप्त करने के लिए शालीन और भी दृड़ संकल्प हो गया। वह जल्दी से जल्दी अपने मर्दांग को दोबारा आवेश में लाना चाहता था जिससे वह प्रगति का ऋण तत्काल चुका सके। प्रगति मानो शालीन की मनोस्थिति भांप गई थी। उसने शालीन के भाले में जान डालने के उद्देश्य से उसको हाथों में ले लिया और हौले-हौले सहलाने लगी।

कुछ देर में उसने शालीन को पीठ के बल लिटा कर उसके ऊपर आसन जमा लिया अपने मुँह और जीभ से उसके निम्नान्गों को चाटने लगी। प्रगति की पीठ शालीन की तरफ थी जिससे जब वह झुकती तो उसकी गांड शालीन को दिखाई देती। कभी कभी उसकी जांघों के बीच से उसके डोलते हुए स्तन भी दिख जाते। प्रगति की मौखिक क्रिया और उसके मादक अंगों के दृश्य से शालीन के शिथिल लिंग को मूसल बनने में ज्यादा देर नहीं लगी। जैसे ही उसके लंड में जान आई उसने प्रगति को अपने ऊपर से हटा कर पीठ के बल लिटा दिया और स्वयं उसके ऊपर आ गया। वह अपने कड़कपन को खोना नहीं चाहता था। बिना समय गंवाए उसने प्रगति की योनि पंखुड़ियों को अपने लिंग-नोक से रगड़ना शुरू किया। साथ ही अपने मुँह से उसके कसे हुए दूधिया टीलों पर आक्रमण कर दिया। उसकी जीभ का सामना उसके स्तनों पर विराजमान अहंकारी चुचूकों से हुआ जो किसी के सामने नतमस्तक नहीं होना चाहती थीं। शालीन की जीभ चोंच-समान चूचियों के चारों तरफ लपलपाने लगी।

उधर नीचे उसका लंड-शीर्ष धीरे धीरे जोर लगाते हुए प्रगति के योनि कपाट खोलने की चेष्टा कर रहा था। प्रगति ने मदद करते हुए अपनी जांघें थोड़ी और खोल दीं। शालीन का सुपारा योनि की कोपलों के ऊपर हल्का-हल्का वार कर रहा था और बीच बीच में उसके योनि-मुकुट पर टपकी मार रहा था।

प्रगति की ओखली शालीन के मूसल के लिए बिलकुल तैयार थी। उसके निम्न होटों से रस फूट चुका था जिससे गुफ़ा का रास्ता चिकना हो गया था। शालीन के दंड का मुकुट भी इस रस में भीग गया था जिस से जब वह प्रगति की सुरंग पर हल्का वार करता तो फिसलन के कारण अन्दर जाने लगता। पर शालीन अभी प्रवेश नहीं करना चाहता था। उसका उद्देश्य प्रगति को परमोत्कर्ष तक ले जाने का था। वह शनैः शनैः उसको कामुकता के शिखर पर ले जाना चाहता था। इसके लिए आत्म-नियंत्रण और धीरज की ज़रुरत थी। उसने अपने मुँह का ध्यान स्तनों से हटा कर प्रगति के पेट पर केन्द्रित किया। रेशम से रोएँ से ढका सपाट पेट शालीन के गालों को जब लगा तो उसकी हलकी दाढ़ी से प्रगति को बहुत गुदगुदी हुई। उसने अपने आप को इधर उधर हिलाया जिससे शालीन के लंड का सुपारा अपने लक्ष्य से हटकर यहाँ वहां लगने लगा।

शालीन ने गुदगुदाना बंद किया और प्रगति को काबू में करके फिर से उसकी म्यान में अपनी तलवार की नोक डालने लगा। शालीन ने तय कर लिया था कि वह जल्दबाजी में लंड को पूरा नहीं घोंपेगा। वह लगातार करीब आधा या एक इंच तक चूत में लंड डाल कर उसे मानो छेड़ रहा था। प्रगति की लालसा बढ़ रही थी और वह सांप रूपी लंड को जल्दी से उसके बिल में पहुँचाना चाहती थी। उसने अपनी टांगें और खोल दीं और शालीन के छोटे प्रहारों का जवाब अपने कूल्हे उठा उठा कर देने लगी जिससे उसका लट्ठ ज्यादा अन्दर चला जाये। पर शालीन होशियार था। उसने प्रगति को अपने प्रयास में सफल नहीं होने दिया। बस एक इंच तक का प्रवेश करता रहा जिससे प्रगति की योनि व्याकुल से व्याकुलतर होती गई। प्रगति अब किसी तरह अपनी चूत को लंड से भरना चाहती थी। अब शालीन ने प्रगति का हाथ लाकर उसकी एक ऊँगली उसके योनि-मटर पर रख दी और उसको हलके से सहलाने का इशारा कर दिया। प्रगति अपनी कलिका को सहलाने लगी। इससे उसकी उत्तेजना और भी बढ़ गई और वह कसमसाने लगी।

अब शालीन ने ब्रह्मास्त्र छोड़ते हुए अपनी तर्जनी ऊँगली को मुँह में गीला करके प्रगति की गांड में डाल दी और धीरे धीरे उसे अन्दर-बाहर करने लगा। प्रगति को इसकी अपेक्षा नहीं थी और वह सिहर उठी। उसके शरीर में मादकता का तूफ़ान उठने लगा और उसके धैर्य का बाँध टूटने लगा। वह हर हालत में शालीन के लंड को मूठ तक अपने कुंए में डलवाना चाहती थी। उसने अपने कूल्हों का प्रहार बढ़ाया और अपनी आँखों से अपनी इच्छ्पूर्ति की मानो भीख सी मांगने लगी। शालीन को इसी मौक़े का इंतज़ार था। उसने अपनी बरछी को पूरा बाहर निकाला और फिर पूरे वेग से उसे जड़ तक प्रगति की व्याकुल चूत में घुसेड़ दिया। जैसे बरसों से तपते रेगिस्तान को बारिश की झड़ी मिल गई हो, प्रगति की योनि लंड को पूरा अन्दर पाकर मानो मोक्ष को प्राप्त हो गई। उसके पूरे जिस्म में एक मरोड़ सी आई और वह एक ही पल में चरमोत्कर्ष को न्यौछावर हो गई। करीब आधे मिनट तक उसका जिस्म उत्कर्ष शिखर से उत्पन्न झटकों का सामना करता रहा और फिर धीरे से आनंद के सागर में डूब गया।

शालीन अपनी सफलता पर खुश था। प्रगति उसे अच्छी लग रही थी और उसके आनंद से उसे ख़ुशी मिल रही थी। उसे लगा कि उसने प्रगति का लिंग-पान वाला ऋण चुका दिया है। जब प्रगति को होश आया तो शालीन ने धीरे धीरे अपना पिस्टन फिर से चालू किया। उसका लंड इस दौरान थोड़ा शिथिल हो गया था पर एक दो झटकों के साथ ही अपनी पूरी मस्ती में आ गया। अब वह निश्चिन्त हो कर लम्बे लम्बे वार करने लगा। प्रगति को इतना यौन सुख पहले कभी नहीं मिला था। वह धन्य हो गई थी और उसका रोम रोम शालीन का आभारी हो रहा था। अब वह उसके लिए कुछ भी करने को तैयार थी। शालीन के झटकों से मेल खाते हुए वह अपने चूतड़ उठा रही थी जिससे लंड ज्यादा से ज्यादा गहराई तक अन्दर जा सके। उसको समझ नहीं आ रहा था कि किस तरह वह शालीन को और अधिक मज़े दिलवाए। उधर शालीन एक बार फव्वारा छोड़ चुका था तो उसको जल्दी स्खलन का डर नहीं था। वह कभी तेज़ और कभी धीमी गति से तथा कभी हल्के तो कभी गहरे वारों से प्रगति की चूत-सेवा कर रहा था।

प्रगति ने सोचा शालीन को और अधिक खुश करने के लिए वह अपनी गांड उसे भेंट कर दे। पर उसे डर था कि कहीं शालीन उसके इस आचरण से उसे गलत ना समझ ले। पर अपनी इज्ज़त की परवाह ना करते हुए उसने पहल कर ही दी। जब शालीन अपने झटकों में थोड़ा रुका तो प्रगति ने अपने आप को उससे पृथक किया और इससे पहले कि शालीन कुछ सोचे उसने उसके लंड को मुँह में लेकर अपने थूक से अच्छी तरह गीला कर दिया। फिर थूक उँगलियों पे लेकर अपनी गांड के छेद में और उसके आस-पास लगा दिया। शालीन बिलकुल हतप्रभ रह गया। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके जीवन की दो सबसे बड़ी मनोकामनाएँ एक ही दिन में पूरी हो जाएँगी। गांड मारने की लालसा उसे ना जाने कब से थी। उसने सोचा भी था कि किसी दिन वह प्रगति को इसके लिए मनाने की कोशिश करेगा पर कुंआ खुद प्यासे के पास आएगा इसकी उम्मीद नहीं थी।

उसका लंड प्रगति की गांड के छेद को देख कर एकदम तन गया। उसने गांड मारने की विधि अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रखी थी और वह जानता था कि केवल थूक से गांड में प्रवेश मुमकिन नहीं है। और अगर होगा भी तो प्रगति को बहुत दर्द होगा। तो उसने उठ कर अलमारी से के वाय जेली की टयूब निकाल ली और प्रगति को दिखाई। प्रगति ने सिर हिलाकर स्वीकृति दे दी और गांड मरवाने के लिए उपयुक्त कुतिया-आसन में आ गई। शालीन ने उँगलियों में जेली लगा कर उसकी गांड में अच्छी तरह लगा दी और फिर एक ऊँगली अन्दर डाल कर उसके छेद को ढीला करने लगा। प्रगति को गांड मरवाने का अनुभव था पर शालीन के लिए यह पहला अवसर था। तो प्रगति ने उसको इशारों से अनुदेश देने शुरू कर दिए। अपनी गांड की अंदरूनी मांसपेशी ढीली करते हुए उसने शालीन की ऊँगली पूरी अन्दर डलवा ली। फिर दो उँगलियाँ और बाद में तीन उँगलियों से गांड में प्रवेश करवा लिया।

इतना होने के बाद प्रगति ने शालीन के लंड के ऊपर अच्छे से जेली लगा दी। उसका लंड वैसे ही अच्छे से तना हुआ था। फिर उसने शालीन को उसकी गांड में अच्छे से जेली लगाने के लिए इशारा किया। जब यह हो गया तो प्रगति ने कुतिया आसन में आकर अपने चूतड़ खोल लिए और अपना सिर बिस्तर पर रख कर शालीन को प्रवेश करने का इशारा किया। शालीन ने प्रगति के कूल्हों की ऊँचाई को इस तरह व्यवस्थित किया जिससे उसका लंड आराम से उसकी गांड के छेद तक पहुँच जाये। फिर उसने एक नौसिखिये की तरह अपना लंड गांड में डालने का प्रयत्न किया। पर वह फिसल गया। जब एक दो और प्रयत्न भी विफल रहे तो प्रगति ने पलट कर शालीन को चिंता नहीं करने का संकेत किया और एक बार फिर जेली का लेप दोनों के गुप्तांगों पर कर दिया। उसने शालीन को कुछ नहीं करने का अनुदेश दिया और फिर से कुतिया आसन में आ गई। उसने अपनी गांड को शालीन के लंड के सुपारे के साथ लगाया और धीरे धीरे पीछे की तरफ जोर लगाने लगी। जब सुपारा छेद में घुसने को हुआ तो प्रगति ने गांड को थोड़ा ढीला किया और सुपारे को अन्दर ले लिया।

सुपारे के अन्दर जाते ही शालीन की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और वह चोदना शुरू करने वाला था कि प्रगति ने उसे रुकने का इशारा किया।

कुछ देर बाद प्रगति ने पीछे की ओर धक्का देना शुरू किया। लंड थोड़ा और अन्दर गया और रुक गया। अब प्रगति ने एक बार अपनी गांड की अंदरूनी मसल को ढीला करते हुए जोर से पीछे को धक्का मारा और लंड लगभग पूरा अन्दर चला गया। इसमें प्रगति की हल्की सी चीख निकल गई पर उसने पीछे की तरफ दबाव बनाए रखा और लंड को पूरा अन्दर डलवा लिया। शालीन को अत्यंत ख़ुशी हो रही थी। उसने खरबूजे को चाकू पर गिरते देखा था। उसका लंड प्रगति की तंग गांड में अन्दर तक फंसा हुआ था। गांड इतनी तंग थी कि लंड हरकत करने लायक नहीं था। पर इस गिरफ़्तारी में भी शालीन को मज़ा आ रहा था। उसने धीरे धीरे हरकत करनी शुरू की। पहले थोड़ा सा और फिर थोड़ा और उसका लंड अन्दर बाहर होने लगा। प्रगति को भी मज़ा आ रहा था। उसने भी अपने आप को आगे पीछे करके गांड मरवाना शुरू किया। बहुत लोगों में यह भ्रम है कि लड़कियों को गांड मरवाना अच्छा नहीं लगता। सच तो यह है कि अगर ठीक से किया जाये तो कई लड़कियों को गांड मरवाने में चुदवाने से ज्यादा मज़ा आता है। प्रगति भी ऐसी लड़कियों में से एक थी।

शालीन को लगा कि जेली सूख सी रही है और घर्षण में मज़ा नहीं आ रहा तो उसने लंड सुपारे तक बाहर निकाल कर उसकी छड़ पर और जेली लगा ली। अब गांड मारने में आसानी हो गई। उसने अपने वारों की रफ़्तार और गहराई बढ़ाई और लगभग चुदाई के बराबर अन्दर-बाहर करने लगा। उसके इस आक्रमण से प्रगति को और भी मज़ा आने लगा और उसने भी हिचकोले लेने शुरू कर दिए। शालीन ने प्रगति की दोनों चुटिया पकड़ ली और उनको अपनी तरफ खींच खींच कर गांड मारने लगा मानो घुड़सवारी कर रहा हो।

कुछ देर बाद उसने प्रगति को आगे की तरफ धक्का देते हुए उसको कुतिया आसन से निकाल कर पेट के बल लिटा दिया। उसके चूतड़ों के नीचे तकिया रख कर उन्हें ऊपर उठा दिया और इस अवस्था में उसको पेलने लगा। यह आसन उसको बहुत ही मज़े दे रहा था क्योंकि इसमें उसका पूरा अगला शरीर प्रगति के पूरे पिछले शरीर के संपर्क में था। लंड को घर्षण भी अच्छा मिल रहा था। शालीन ने अपने हाथ प्रगति के नीचे से डालते हुए उसके बोबों को पकड़ लिया। अब उसके हाथों में स्तन थे और उसका लंड उसकी गांड में पूरा घुसा हुआ था। उसका सीना प्रगति की पीठ पर रगड़ खा रहा था और उसकी जांघें प्रगति के चूतड़ों को मल रहीं थीं। शायद इसी को स्वर्ग कहते हैं।

इस आसन में प्रगति कुछ ज्यादा नहीं कर पा रही थी पर शालीन अपनी मन मर्ज़ी कर रहा था। उसको गांड मारने में बहुत मज़ा आ रहा था। अब उसका फव्वारा दोबारा छूटने को हो रहा था। उसने अपने झटके और लम्बे कर दिए और लगभग पूरा लंड बाहर निकाल निकाल कर अन्दर घोंपने लगा। उसका लावा उमड़ने वाला था पर शालीन यह चरम आनंद के क्षण और बढ़ाना चाहता था। उसने अपनी पूरी आत्मशक्ति का उपयोग करते हुए अपने स्खलन पर नियंत्रण बनाये रखा और गांड मारता रहा।

प्रगति को यह आसन एक समर्पण सा लग रहा था क्योंकि वह कुछ नहीं कर सकती थी। उसका पूरा जिस्म शालीन ने मानो दबोच रखा था। वह शालीन को मज़ा दे रही थी और इसी में उसको मज़ा आ रहा था। यह अलग बात है कि गांड में भी उसे अत्यधिक आनंद की अनुभूति हो रही थी। आखिर वह क्षण आ ही गया जब शालीन अपनी परम कोशिश के बाद भी अपने चरमोत्कर्ष को और टाल नहीं पाया और उसने एक आखरी ज़ोरदार वार किया और अपनी पिचकारी प्रगति की गरम गांड में छोड़ दी।

फिर वह बहुत देर तक प्रगति के ऊपर ऐसे ही लेटा रहा जब तक उसका तृप्त लंड अपने आप गांड से बाहर नहीं आ गया। फिर उसने प्रगति को पलट कर उसके ऊपर पुच्चियों की बौछार कर दी !

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शगन



मेरी गाण्ड भी मारी और ...-2

प्रेषक : मंगू जी

वह गांडू इस कदर मेरी गांड मार रहा था जैसे कितने साल से भूखा था, मगर उसका पानी नहीं छुट रहा था। करीब बीस मिनट से मैं उससे चुद रहा था और फिर उसने मेरी गांड में पूरा पानी छोड़ दिया।

तभी दरवाज़ा खुला, मैं और वो एकदम चौंक गए क्योंकि दरवाज़े पर एक मस्त औरत खड़ी थी और हमारा खेल देख रही थी।

मैंने कहा- आपको क्या लेना-देना !

यहाँ तक आप इस कहानी के पहले भाग में अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ चुके हैं।

उसने कहा- मुझे आपका लेना है और आप दोनों को सेक्स का आनंद देना है !

हमारे यू पी वाले ने कहा- मैडम ! मैं तो इसकी गांड मारूंगा !

इतना कहते हुए उसने मेरी गांड सहलाना शुरू किया और गांड को मस्त तरीके से चूमने लगा। मैं सिसकियाँ भरने लगा। अब मैं भी तड़पने लगा उसके लौड़े को दोबारा अंदर घुसवाने को !

अब मै भी गांड मास्टर बन चुका था। वह तो मास्टर था इस विषय में ! उसने बड़े प्यार से मेरे गाल पर चुम्मी ली और मेरी गांड को चूम लिया और वो औरत बड़ी बेताब हो रही थी। वो भी क्या मस्त थी ! उसने स्लैक टाईप आसमानी रंग की चूड़ीदार और ऊपर कसी कमीज़ पहनी थी।

उसने कहा- मैं क्या देखती रहूँ ?

मैंने कहा- क्यों, आप नहीं चाहती कि मेरी गांड मारी जाये ?

उस पर उसने कहा- तो क्या मैं देखती रहूँ ?

उसने आव ना देखा ताव ! तपाक से मेरे पास आई। मैं तो घोड़े की मुद्रा में था और वह भाईसाब तो बड़े मूड में थे, वो कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते थे, उनका ध्यान उस औरत पर जा ही नहीं रहा था, वो तो बस गांड मिली- सब मिला, इस ख़ुशी में था।

उस पर उस औरत ने बड़ी चालाकी से अपनी कमीज़ उतार दी और मेरे मुँह में अपनी जीभ डाल दी और मुझे इस कदर उकसाया कि मैं तो दोनों तरह के मज़े लेने को तड़पने लगा। मैंने उस औरत को कहा- मैडम पहले इस साहब से मेरी गांड मरेगी, फिर मैं आपको भी चोदूँगा !

और उस भाई साब ने बड़े स्टाईल से मुझे अपने गोद में बिठा लिया, कहा- तुम घोड़ा मत बनो, मेरे लवडे पर बैठो और धीरे धीरे चुदवाओ !

मैंने आहिस्ता से अपनी गांड में उसका लौड़ा घुसवा लिया। अब तो सीधे घुस गया- आ हा हा ! क्या सकून मिला ! अब तो बस मज़े ही मज़े !

मगर उस औरत से रहा ना गया, उसने मुझे अपने मस्त स्तन हाथों से दबाने के लिए कहा। मैंने तो बड़ी फुर्ती से उसके स्तन दबाने चालू किये। फिर उसने बड़ी तेजी से अपनी ब्रा खोल दी और दो गेंद खुल कर मेरे हाथों में आ गए।

इधर भइयाजी ने तेजी से ऊपर-नीचे होना चालू कर दिया। मैंने उसको कहा- तेजी बढ़ाओ ! मुझे बहुत मज़ा आएगा !

और सही कँहू, मुझे बहुत मज़ा आ रहा था, पीछे से गांड मारी जा रही थी और आगे दो गेंद मेरे हाथ में थे। गांड बड़ी मस्त मारी भइयाजी ने ! चाहता था दो लौड़े एक साथ मेरी गांड मारें पर वहाँ पर तो एक ही लौड़ा था। भैयाजी से रहा नहीं जा रहा था, वो बड़े बेताब थे दूसरी बार गांड मरवाने के लिए ! पर उनका कर्जत स्टेशन पर उतरना हुआ, उतरते के वक्त उसने मेरे हाथ में एक लिफाफा दिया। मैंने पूछा- क्या है ?

कहा- मेरा कांटेक्ट नम्बर है, कभी याद आये तो फोन कर लेना ! पूरे दिन भर के लिए हम गांड मारने और मरवाने का प्रोग्राम रखेंगे, कुछ और भी लोग हमारे साथ जुड़ेंगे, बड़ा मजा आएगा !

ट्रेन छुटी तो मुझे जुदाई जैसा लगा। मैं अपनी सीट पर आकर बैठ गया और लिफाफा खोल कर देखने लगा तो अंदर उसका कार्ड था और १००० रुपये का एक नोट था। मैंने नोट अपनी जेब में रख लिया।

मैंने उसका नाम पढ़ा उसका नाम था रमण सिन्हा और वह नासिक का रहने वाला था। मैं सोच में था कि क्या वह मुझे दोबारा मिल पायेगा ?

यह देखकर उस औरत ने कहा- अरे मैं क्या ऊँगली डलवाने बैठी हूँ ? चलो आ जाओ ! वो अब चला गया !

कहते हुए वो मेरी गोद में बैठ गई। स्लैक्स में से उसकी गांड बड़ी शरारती लग रही थी, उसने कहा- मेरा नाम सीमा है !

और पूछा- तुम्हारा नाम क्या है?

मैंने कहा- मंगू जी !

उस पर वो औरत बोली- मेरे पति का बड़ा कारोबार है, पर बड़ा चोदू भी है। रविवार के दिन छुट्टी होती है, तब कहीं नहीं जाता और घर में हम उस दिन पूरी तरह नंगे ही होते हैं। कभी कभार उसके दोस्त भी अपनी बीवियों को लेकर आते है और फिर ग्रुप में चुदाई होती है, बड़ा मजा आता है। तुम्हें भी बुलाऊंगी, फिलहाल तो मेरे साथ चोदम-चोदी करो, फिर पता चलेगा।

मैंने कहा- ऐसी भाषा से आपको शर्म नहीं आती ?

तो उस पर सीमा ने कहा- ऐसी भाषा से मुझे चुदवाने के लिए जोश आता है। मैं तुम्हें गाली दूंगी और तुम भी मुझे उसी तरह जवाब दो ! चलो, अब भड़वे की तरह मस्त तरीके से मेरी स्लेक्स निकालो और मेरी गांड दबाओ !

पहले मैंने उसकी स्लेक्स निकाली, अंदर उसने मस्त हलकी नीली चड्डी पहनी थी, उसे भी मैंने तुरंत निकाल दिया, उसकी गांड पर हाथ फेरा और आहिस्ता से मुँह में एक चुचूक दबा लिया। उस पर वो सिसकियाँ लेने लगी।उसने तेजी से मेरा तना हुआ लौड़ा पकड़ लिया और कहा- यह अब सिर्फ मेरा है, अब इससे मैं चुदुंगी और बस मेरी ही गांड मरेगी !

मैंने कहा- हाँ भाई हाँ ! अब तुम्हारा ही राज है !

वो और शरारती हो गई, उसने मेरा लौड़ा लेकर अपनी छाती पर मलना शुरू किया। बड़े कड़क थे उसके गेंद और उनमें फंस गया मेरा लौड़ा। इतने में ट्रेन रुक गई और बाहर किसी की आवाज़ आई। ट्रेन दो घंटे लेट होगी।

यह सुन कर सीमा और खुश हुई, कहने लगी- मंगूजी ! कुदरत साथ दे रही है ! चलो, अब चैन ही चैन !

मैंने कहा- हाँ मेरी रांड !

तो उसने खुश होकर कहा- तो फिर चल भड़वे ! अब मत रुक ! कहकर उसने मुझे चूसने के लिए एक गोली दी और कहा- इससे बड़ी देर तक पानी नहीं छूटेगा !

मैंने उसे 69 की अवस्था में आने कहा और उसने ऊपर चढ़कर मेरा लौड़ा मुँह में लिया और उसका भोंसड़ा मेरे मुँह में आया। पूरी तरह से हम एक दूसरे का लौड़ा-भोंसड़ा चूस रहे थे। फिर उसने खड़े होकर कहा- मंगूजी ! मुझे खड़े होकर चाटो !

काफ़ी देर बाद सीमा ने मुँह फेर लिया और गाण्ड में डालने के लिए कहा। मैंने एक ही पल में डालने के लिए सोचा। मगर उसकी गांड इतनी बार चुदवाने के बाद भी कसी हुई थी। फिर भी बड़ी फुर्ती से मैंने गांड में डाल दिया और उसके मुँह से निकला- अबे भड़वे ! कितना कड़क लौड़ा पाया है ! आहिस्ता से डाल !

मैंने उसकी एक न सुनी, मैंने तो डाल दिया और वो अब अह हु हु हु हु करने लगी और मुझ पर अब सेक्स का बुखार चढ़ गया जो भैयाजी ने जगाया था।

दस मिनट में मैंने पोज़ बदला और उसे उलटे मुँह लौड़े पर बिठाया और भोंसड़े में लेने कहा और उसे धीमे धीमे ऊपर-नीचे होने को कहा। वो बड़ी खुशी से चुदवा रही थी। इस पोज़ से मन भर जाने के बाद अब मैंने उसे बर्थ पे लिटा दिया और एक ही शॉट में लौड़ा पूरा घुसेड़ दिया और लगातार उसे चोदा पर पानी नहीं छूट रहा था।

इस पर सीमा ने कहा- गोली थूक दो तो तुम्हारा लौड़ा भी मेरे भोंसड़े में थूकेगा !

मैंने गोली थूक दी और तुरंत पानी छूटने को हुआ। उसने कहा- मंगूजी ! बाहर एक बूँद भी मत गिरने देना ! सारा पानी मेरा है !

मैंने पूरा पानी उसके भोंसड़े में डाल दिया। अब पुणे स्टेशन भी नजदीक आ रहा था और सीमा का भोंसड़ा अभी मेरे लौड़े की चाहत कर रहा था।

मैंने कहा- सीमा पुणे में हो तो जरूर मिलेंगे, फिलहाल हमें जुदा होना चाहिए !

मैंने अपने कपड़े पहन लिए और सामान तैयार किया और उसे पहले चड्डी और ब्रा अपने हाथों से पहनाई और बाकी कपड़े पहन लिए। स्टेशन आते हमने देखा कि पूरा डिब्बा खाली ही था। उतरते ही सीमा ने मेरे हाथ में दो हज़ार रुपये दिए और अपना कार्ड दिया, कहा- मुझे मुम्बई में जरूर मिलना ! मेरे पति को साथ रखकर चोदने का प्रोग्राम रखेंगे और तुम्हारी गांड भी मारने के लिए बंदोबस्त करूंगी।

मैंने कहा- पुणे में कहाँ मिलोगी?

तो कहा- नहीं, यहाँ नहीं ! क्योंकि यहाँ मैं किसी दूसरे के यहाँ आई हूँ। तुम मुम्बई में ही मिलना !

वो रिक्शा में बैठने के लिए जा रही थी, पीछे से उसकी गांड बड़ी मस्त तरीके से मटक रही थी। मैं मन ही मन सोच रहा था- क्या मैंने इसे ही चोदा था ?

उसने पलट कर देखा, टाटा किया और चली गई।

पर दोस्तो, अफ़सोस ! वो दोनों कार्ड कहीं कपड़ों के साथ धुल गए। अब मैं अपने आपको कोसता हूँ। आप ऐसी गलती कभी मत करना !

आप अपने विचार जरूर बताना !

manguji123@hotmail.com

खाओ पियो चौड़े से, चूत चुदाओ लौड़े से

खाओ पियो चौड़े से, चूत चुदाओ लौड़े से
प्रेषिका : मनमीत कौर

बारहवीं कक्षा पास करने के बाद जब मैंने कॉलेज में दाखिला लिया तो वहां नई सहेलियाँ बनीं। दो चार दिन में ही उनकी बातें सुन सुनकर मुझे यह एहसास हो गया कि मैं कितने पिछड़े क़िस्म के स्कूल से पढ़ कर आई हूँ। उनकी बातें और अनुभव सुनकर मेरे अन्दर भी किसी से प्यार करने की इच्छा जागृत हो गई, सीधे शब्दों में कहूँ कि मैं चुदवाने के लिए बेताब होने लगी।

कॉलेज में ज्यादातर लड़कियाँ अपनी स्कूटर या कार से आती जाती थीं, मैं और तीन चार अन्य लड़कियाँ ही सिटी बस से कॉलेज आती जाती थीं।

एक दिन कॉलेज से निकलने के बाद मैं बस स्टॉप पर बस का इंतज़ार कर रही थी कि एक हॉण्डा सिटी कार मेरे पास आकर रुकी, कार अमित अंकल चला रहे थे, अमित अंकल पापा के दोस्त थे और हमारे घर के सामने ही रहते थे।

उन्होंने मुझसे पूछा- घर चलना है?

मेरे हाँ कहते ही उन्होंने कार का दरवाजा खोला, मैं उनके बगल की सीट पर बैठी और थोड़ी ही देर में घर पहुँच गई।

घर पहुँचने के काफी देर बाद तक मेरे जहन से बस और कार के सफ़र का फर्क निकल नहीं पा रहा था, मैं सोच रही थी कि कितना सुखी रहता है कार में सफ़र करने वाला ! ना धूल मिटटी, ना गर्मी, ठाठ से ए.सी. में बैठकर सफ़र कीजिए।

अब अक्सर यह संयोग होने लगा कि मेरे कॉलेज से निकलने के समय अमित अंकल उधर से गुजरते और मुझे साथ ले लेते। मेरे पापा भी खुश हो जाते कि आज भी वापसी का बस का किराया बच गया।

एक दिन मेरे कार में बैठते ही अमित अंकल ने पूछा- दस पन्द्रह मिनट देर हो जाए तो कोई परेशानी तो नहीं है ना?

मैंने कहा- नहीं अंकल, कोई परेशानी नहीं है !

अमित अंकल ने कार एक रेस्तरां के बाहर रोकते हुए कहा- इसका डोसा बहुत टेस्टी है !

पापा के साथ इस रेस्तरां में आने के बारे तो मैं सोच भी नहीं सकती थी, वो एक नंबर के कंजूस आदमी हैं। खैर, हमने डोसा खाया और घर आ गए।अब हर दूसरे चौथे दिन हमारा इसी तरह कहीं खाने पीने का प्रोग्राम होने लगा। एक दिन रेस्तरां में कॉफ़ी पीते पीते अमित अंकल बोले बहुत दिनों से पिक्चर देखने का मन हो रहा है, अगर कहो तो कल चलें, रानी मुखर्जी की नई फिल्म लगी है।

मैंने कहा- कल कब ?

अंकल ने कहा- कॉलेज बंक करके, तुम्हारे घर किसी को पता भी नहीं चलेगा।

कुछ अंकल के अहसान, कुछ नई उमंग और कुछ अनजानी सी चाहत ने मेरे मुँह से हाँ निकलवा दी।

अगले दिन तय कार्यक्रम के हिसाब से हम मिले और पिक्चर देखने सिनेमा हॉल में पहुँच गए। इंटरवल तक आराम से पिक्चर देखी और बातचीत करते रहे। इंटरवल में अमित अंकल पॉप कॉर्न और कोका कोला ले आये। पिक्चर चलती रही और हम पॉप कॉर्न खाते रहे, पॉप कॉर्न लेने के दौरान कई बार एक दूसरे से हाथ छू हो गया तो अमित अंकल ने कहा- मनमीत जब तुम्हारा हाथ छूता है तो मेरे शरीर में कर्रेंट सा दौड़ जाता है, तुम्हें कुछ नहीं होता क्या?

मैं कुछ नहीं बोली तो अमित अंकल ने मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर पूछा- मेरे छूने से तुम्हे कुछ नहीं होता क्या?

मैंने धीरे से कहा- होता है !

तो उन्होंने मेरा हाथ चूम लिया, अपने दोनों हाथों में मेरा हाथ छुपा लिया और बोले- यह हाथ मैं कभी नहीं छोडूंगा !

इसके बाद लगभग रोज ही मैं उनके साथ आने जाने लगी और हम लोगों में छूने और चूमने का काम शुरू हो गया।

एक रात को एक बजे मेरे मोबाइल पर अमित अंकल का कॉल आया- क्या कर रही हो?

मैंने कहा- सो रही थी !

तो बोले- मनमीत, हमारी नींद उड़ाकर तुम सो रही हो?

इसके बाद रोज़ रात को हम लोगों की बातचीत शुरू हो गई। बातचीत का विषय चलते चलते यहाँ तक आ पहुँचा कि अमित ( अमित अंकल कहना मैं छोड़ चुकी थी ) बोले- जिस दिन तुम्हारी चूत के गुलाबी होठों को खोलकर अपना लंड उस पर रखूँगा, तुम जन्नत में पहुँच जाओगी।

वास्तविकता यह थी कि अमित मुझे चोदने के लिए जितना बेताब थे मैं चुदवाने के लिए उससे ज्यादा बेताब थी। अमित की कल्पना करके ना जाने कितनी बार ऊँगली से काम कर चुकी थी।

खैर, जहाँ चाह वहाँ राह !

वीना आंटी ( अमित की पत्नी ) कुछ दिनों के लिए अपने मायके गई। रात को अमित का फ़ोन आया- कल का क्या प्रोग्राम है?

मैंने कहा- कुछ नहीं ! आप बताएँ !

तो बोले- कल कॉलेज बंक करो, मैं भी ऑफिस नहीं जाता ! मेरे घर आ जाना, दोनों मिलकर अच्छा सा खाना पकायेंगे, खायेंगे।

मैंने कहा- ठीक है, आप अपने घर का पिछला दरवाज़ा खुला रखना, मैं पीछे से आऊंगी।

इतना सुनकर अमित ने फ़ोन काट दिया।

मैंने अपना दाहिना हाथ अपनी चूत पर फेरते हुए कहा- मुनिया रानी ( चूत का यह नाम कॉलेज की लड़कियों ने रखा था) कल तुझे लंड की प्राप्ति होने वाली है ! तैयार हो जा !

मैं सुबह थोड़ा जल्दी उठी, अपनी चूत के आस पास के अनचाहे बालों (झांटों) को साफ़ किया, अच्छे से नहा धोकर तैयार हुई, सुन्दर सा सूट पहना और मम्मी से "कॉलेज जा रही हूँ" कहकर घर से निकल पड़ी।

चुदवाने के ख्याल से दिल बल्लियों उछल रहा था, मन में हल्का सा डर भी था लेकिन डर पर चाहत भारी थी। अमित के घर पिछले दरवाज़े पर हाथ रखा तो खुल गया। अन्दर घुसकर दरवाजा बंद किया तो तौलिया लपेटे अमित मेरे सामने आ गए, शायद नहाने जा रहे थे।

पहली बार उन्हें इस रूप में देखकर मैं रोमांचित हो गई। अमित करीब पचास साल के 5 फुट 10 इंच लम्बे हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति थे, बालों से भरा उनका सीना उनसे लिपट जाने की दावत दे रहा था।

एक कदम मैं आगे बढ़ी और दो कदम अमित। मैं उनके सीने से लग गई, उन्होंने मेरे माथे पर चूमा, मेरे चूतड़ों को हल्के-हल्के हाथों से दबाने लगे, मैं बेहाल होती जा रही थी।

अमित ने एक एक करके मेरे सारे कपड़े उतार दिए, संतरे के आकार के मेरे मम्मे देखकर उनकी आँखों में चमक आ गई और मेरी चूत के दर्शन करते ही वो पागल से हो गए और अपने होंठ मेरी चूत पर रखकर चूमने-चाटने लगे। उनके चाटने से मेरी चूत भयंकर रूप से गीली हो गई और चुदने के लिए बेताब हो गई। अमित चूत को चाटते ही जा रहे थे, मैंने उनका तौलिया खींच कर अलग कर दिया। तौलिया हटते ही उनका लंड मुझे दिख गया, अमित का लंड देखते ही मेरी तो गांड ही फट गई और चुदवाने का नशा हिरण होने लगा।

कारण यह कि अमित का लंड करीब 8 इंच लम्बा और काफी मोटा था, मुझे मालूम था कि यह मेरी चूत का भुरता बना देगा।

मैंने अपने जीवन में इससे पहले सिर्फ एक बार लंड देखा था, वो भी अपने पापा का। एक बार रात को मैं बाथरूम जाने के लिए उठी तो देखा मम्मी पापा के कमरे की लाईट जल जल रही थी, उत्सुकता से खिड़की की झिर्री से देखा कि मम्मी नंगी लेटी हुई हैं और पापा अपने लंड पर कंडोम चढ़ा रहे थे। पापा का लंड करीब 4-5 इंच लम्बा रहा होगा। आप ही सोचिये कोई बीस साल की कुंवारी लड़की जो 4-5 इंच का लंड अपनी बुर में लेने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो, उसे आठ इंच लम्बा अच्छा खासा मोटा लंड दिख जाए तो वो घबरायेगी या नहीं ?

मुझे ख्यालों में खोया देखकर अमित बोले- क्या हुआ जान ?

मैं कुछ नहीं कह सकी, मैंने कहा कुछ नहीं। अमित मेरे करीब आ गए और मेरा एक मम्मा अपने मुँह में ले लिया तथा दूसरे पर उँगलियाँ फिराने लगे। इस सबसे मुझमें उत्तेजना भर गई। अमित ने अपना एक हाथ मेरी चूत पर रखा और अपनी ऊँगली अन्दर-बाहर करने लगे।

मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैं चुदासी हो चुकी थी। मैंने कहा- अमित अब मेरे अन्दर समा जाओ !

अमित उठे, मेरी टांगों के बीच आकर अपने लंड का सुपारा मेरी चूत के होठों पर रखा, हल्के से दबाया और सुपारा चूत के अन्दर !

एक झटके में आधा लंड और दूसरे झटके में हल्के दर्द के साथ पूरा लंड मेरी मेरी मुनिया रानी के अन्दर जा चुका था। मैं हैरान थी कि जिस लंड को मैं देखकर डर रही थी वो कितनी आसानी से मुझे चोद रहा था।

करीब आधे घंटे तक चोदने के बाद अमित उठे और अपने लंड पर कंडोम चढ़ाकर फिर जुट गए।

उस दिन अमित ने मुझे तीन बार चोदा और उसके बाद सैकड़ों बार !

आज मैं छब्बीस साल की हो चुकी हूँ, अमित से चुदते-चुदते छः साल हो चुके हैं और शायद बाकी ज़िन्दगी भी अमित से ही चुदवाना पड़े क्योंकि कंजूस प्रवृति के मेरे पापा शायद मेरी शादी कभी नहीं कर पायेंगे। बिना दहेज़ के शादी होगी नहीं और दहेज़ मेरे पापा देंगे नहीं !

मुझे क्या !

अमित अंकल जिंदाबाद !!

खाओ पियो चौड़े से, चूत चुदाओ लौड़े से !

manmeetkaur2010@yahoo.com